शैक्षणिक व राजनितिक गतिविधियों का केंद्र रहा है एतिहासिक रामपुर जलालपुर गांव।
दलसिंहसराय प्रखंड की सरस सलीला रामपुर जलालपुर गाँव की पुण्य गर्भा धरती विद्या, राष्ट्रप्रेम और सेवा भाव में लिए अनेकानेक दिव्यात्माओं तथा विभूतियों की जन्मस्थली रही हैं। शैक्षणिक गतिविधियों के लिए राज्य भर में विख्यात रहा यह गांव स्वतंत्रता आन्दोलन व भू-दान आन्दोलन में अग्रणी रहा।
लगभग तेरहवीं शताब्दी में स्थापित इस ऐतिहासिक गांव के धार्मिक स्थल कई मामलों में विलक्षण है जो आज भी श्रद्धा व विश्वास के प्रतीक है। समझा जाता है कि मिथिलांचल के राजा शिव सिंह के कार्यकाल में जंगलों से आच्छादित इस क्षेत्र में आबादी बसी थी। शिव सिंह के राज्य की सीमा मुंगेर तक थी। उनके शासनकाल में भीषण सूखाड़ पड़ा। तब उन्होंने जगह-जगह तालाब और कुएं खुदवाये। तालाबों तथा कुओं के निर्माण पर धार्मिक अनुष्ठान कराने का प्रचलन था। महाराज शिव सिंह ने जाले डीह (मधुबनी) के जोगाई ठाकुर तथा उनके भाई भोगाई ठाकुर को पूजा पाठ की जवाब देही सौंपी थी।
दोनों भाई मिथिलांचल की सीमा पर यहां खुदवाये गये अंतिम विशाल तलाब की पूजा कराने पहुंचे। यह तालाब आज दैता पोखर के नाम से जाना जाता है। शिव सिंह ने दोनों भाईयों को अनुठान कराने के एवज में यहां की 32 सौ बीघा जमीन दान में दी। बाद में दोनों भाई जाले डीह से आकर यहां बसे। वे अपने साथ अन्य सहायक जातियों को भी लाये। उन्हीं के वंशज बताये जाते है इस गाँव के ब्राह्मण समुदाय। इनके पूर्वज ठाकर कहलाते थे। ब्रिटिश काल में 'चौधरी' कहलाने लगे। रामपुर जलालपुर गांव की सहभागिता आजादी की लड़ाई में अविस्मरणीय रही है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा चलाये गये सविनय अवज्ञा आन्दोलन, भारत छोड़ो आन्दोलन या फिर विनोबा भावे के भूदान आन्दोलन में यहाँ की भागिदारी रही। गांव के स्व. युगल किशोर चौधरी, स्व. रामजानकी चौधरी 1942 में दलसिंहसराय रेलवे स्टेशन लुट-पाट, तोड़-फोर के आरोप में जेल की सीखचों में कैद रहे। स्व. रामाश्रय चौधरी सहित कई लोगों ने 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लिया था।
1945 में दलसिंहसराय थाना पर तिरंगा ध्वज फहराने में शामिल थे। स्व. रामाश्रय चौधरी (पिता स्व. खोखन चौधरी) व स्व. बुन्नी दास पुलिस द्वार उस दौरान चलायी गयी अंधाधुध गोलीबारी में घायल हो गए थे। श्री राम स्वरुप महतो तथा श्री. विष्णुदयाल महतो आज, स्वतंत्रता सेनानी का पेन्शन पा रहे है। इसके अलावा भोला प्रसाद चौधरी, राम निरीक्षण चौधरी, मुटुकधारी चौधरी, केदार चौधरी, प्रयाग गोप, दीपू दास, श्री किसुन चौधरी, गोविन्द गोप, पोसु गोप, महेन्द्र नारायण चौधरी आदि दर्जनों युवको ने अंग्रेजों से लोहा लिया था। गांव में दिग्गज कांग्रेसी नेताओं का जमावड़ा लगता था। अत्यन्त गरीब परिवार के स्व. शिव दास के त्याग और तपस्या को भूलाया नहीं जा सकता। स्वतंत्रता आन्दोलन में कई बार जेल गये।
1942 में भूमिगत रहकर नेतृत्व किया। भू-दान आन्दोलन में बिनोबा भावे के साथ रहकर काम किया। लेकिन स्वतंत्रता सेनानी का पेन्शन इस देशभक्त ने नहीं लिया। गांव के स्व. विशम्भर चौधरी की गिनती जाने-माने समाज सेवियों व न्याय प्रिय व्यक्तियों में होती थी। उन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन व भू-दान आन्दोलन में भाग लिया। गांव के विवादों को सुलझाने के अलावा वे अन्य जिलों में भी मामलों के निष्पादन में अह्म भूमिका निभाते थे। दलसिंहसराय में भाकपा संगठन को मजबूती प्रदान करने में स्व. बैद्यनाथ चौधरी ने सक्रिय भूमिका निभायी। वे 1962 में उप मखिया हुए। 1967 में उन्होंने भाकपा की सदस्यता ग्रहण की। 1981 में विश्व शांति सम्मेलनों में सोफिया, बुल्गारिया, ताशकन्द तथा मास्कों आदि देशों की यात्रायें की। 1970 के भूमि हडपों आन्दोलन का यहां नेतृत्व किया था। अपने त्याग और सेवा भाव के कारण 1967 से 2005 तक लगातार मुखिया पद पर रहे।
राजनीतिक रुप से यह गांव आजादी पूर्व से ही संवेदनशील रहा। यहां पहली बार 1945 में स्व. नेवी महतो ने डिस्ट्रीक बोर्ड का चुनाव लड़ा था 1952 में वे स्वतंत्र उम्मीदवार के रुप में विधानसभा का चुनाव लड़ा। 1957 मे श्री राम स्वरुप महतो, 1962 में प्रो. राम पदारथ महतो, पुनः 1980 में उन्होंने दलित मजदूर किसान पार्टी (दमकिपा) के टिकट पर विधान सभा का चुनाव लड़ा था। जबकि गांव के स्व. बैद्यनाथ चौधरी भाकपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे। लेकिन पहली सफलता रामपुर जलालपुर वासियों को 1995 में मिली जब राम लखन महतो जनता दल के टिकट पर विधान सभा पहुंचे। वे खाद्य आपूर्ति व वाणिज्य राज्य मंत्री रहे।
पुन: 2000 के चुनाव में उनके बड़े भाई प्रो. राम पदारथ महतो चुनाव जीतकर राजभाषा मंत्री के पद को सुशोभित किया। एक बार फिर 2005 के चुनाव में श्री राम लखन महतो दूसरी बार विधानसभा पहुंचने में कामयाब रहे। शिक्षा के प्रसार में इस गांव की ख्याति दूर-दूर तक थी। यहां स्थापित प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय राज्य में अपना एक विशिष्ट स्थान रखता था। गांव के शिक्षा प्रेमी स्व. सोनेलाल चौधरी, वैरागी चौधरी, सियाराम चौधरी, रास बिहारी चौधरी, खाकी चौधरी आदि द्वारा दान में दी गयी लगभग 8 एकड़ भूमि पर वर्ष 1913 में पहले मिडिल वर्नाकु लर गुरु ट्रेनिंग स्कूल के रूप में इसकी स्थापना हुयी थी। बाद में यह जुनीयर बेसिक ट्रेनिंग के रुप में संचालित हुआ। 1952 से यह राजकीय शिक्षा शिक्षक महाविद्यालय रामपुर जलालपुर के रूप में संचालित होने लगा। उस समय सैकड़ो छात्र इसके विशाल प्रांगण की रौनक हुआ करते थे। आवासीय परिसर बाग बगीचों से आच्छादित हैं। कई जिलों के छात्र यहां रहकर गुरुकुल परम्परा का निर्वहन करते हुए प्रशिक्षण पाते हैं। वर्तमान में सरकार के द्वारा वर्ष 2012 से पुनः इस प्रशिक्षण महाविद्यालय में रौनकता बढाई गई हैं, इसका विशाल परिसर, प्रसासनिक भवन, महिला एवं पुरुष छात्रावास प्रशिक्षण महाविद्यालय की शोभा बढ़ा रहे हैं।
गाँव में शिक्षा की मशाल जलाने वालों में रामदेव लाल, बहुजन लाल, हरिनन्दन लाल (बुलाकीपुर) का नाम लोग आज भी आदर के साथ लेते है। कन्या प्राथमिक विद्यालय की स्थापना के लिए स्व. भोला प्रसाद चौधरी व श्री राम जप्पू चौधरी ने अपनी जमीन दान में दी थी। वहीं प्रा. विद्यालय, रामपुर पश्चिम की स्थापना के लिए स्व. नेवी महतो ने जमीन दी और कमरे बनवाये थे। उन्होंने राष्ट्रीय उच्च विद्यालय दलसिंहसराय की सक्रिय सहयोग किया था। वर्ष 1952 में सर्वोदय पुस्तकालय की स्थापना स्व. राम स्वरुप चौधरी, देव नारायण चौधरी, रामेश्वर चौधरी राम बहादुर चौधरी द्वारा करायी गयी थी। अभी यह पुस्तकालय स्थानीय जनप्रतिनिधि के प्रयास से क्रियाशील होने को अग्रसर हैं। पूर्व से पुस्तकालय हेतु स्वर्गीय भागीरथ चौधरी द्वारा स्थानीय जनप्रतिनिधि के नाम दान में एक कट्ठा जमीन दी गई थी जिस पर वर्तमान में एक मकान का निर्माण कर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र एवं आगनवारी केंद्र संचालित हो रहे हैं, लेकिन सरकारी उदासीनता के कारण जिस उद्देश्य से उक्त भूमि को दान में दिया गया था उसका लाभ आम जन को नही मिल पा रहा हैं।
गाँव की ग्राम विकास समिति, नवयुबक संघ तथा भारतेन्दु नाट्य कला परिषद गाँव के विकास में अपनी भागीदारी निभा रही है। कृषि के मामले में यह गांव काफी समृद्धशाली रहा है। अंग्रेजी काल में वर्जिनीया किस्म का तम्बाकू तथा नील की खेती होती थी। वर्ष 1989 से राजेश कुमार गुड्डू ने पहली बार औषधिय पौधों की खेती शुरु की। उनका मानना है कि धरती के नीचे ऊपजने वाली फसलों के लिए यहां की मिट्टी सर्वोत्तम है। यहां के किसान जलजमाव की समस्या से त्रस्त है। लौउआ चौड़ी, पुरनकी चौड़ी, बाधन बाली चौड़ी, भरोहा बड़का छोटकी चौड़ी, मेहदउली चौरी की उपजाऊ भूमि को जल जमाव से मुक्त नहीं कराया जा सका है। किसानों का मानना है कि समस्या का निदान होने पर यह क्षेत्र इस अंचल का पंजाब बन सकता है। मटीहानी चौड़ से तेलसर चौड़ तक नहर बनाने की योजना बीस-पच्चीस वर्षों से संचिकाओं में कैद है। जबकि सरकार ने इसके कार्यान्वयन के लिए भू-अर्जन किया था और किसानों को मुआवजा भी दिया था।
रामपुर जलालपुर के कई मन्दिर व देवी स्थान विलक्षण है। यहां के विशाल तालाब (दैता पोखर) के समीप अवस्थित मां काली की पीड़ी को गांव के जनक जोगाई ठाकुर तथा भोगाई ठाकुर ने स्थापित किया था। जो उनकी कुल देवता थी। उस समय यहां के लोग विषैले सांपों तथा बिच्छुओं के आतंक से परेशान रहा करते थे। कहते है दोनों भाईयों के भक्ति से प्रसन्न होकर मां काली ने वरदान दिया था कि उनके वंसजी के साथ 'जाले डीह' से आये सेवकों के वंशजों की सर्पदंश से कभी मृत्यु नही होगी। माना जाता है कि इस वंश के लोगों को सर्पदेश के बावजूद आज किसी की मृत्यु नहीं हुयी है। मां काली के इस मन्दिर के प्रति लोगों की श्रद्धा भक्ति का यह प्रमाण है कि यहां उनकी मूर्ति स्थापित करने के लिए श्रद्धालु भक्तों ने वर्ष 2042 तक का अपना-अपना आरक्षण करा रखा है। पूजन वर्ष में एक साथ तीन श्रद्धालु मिल कर पूजा करते हैं। यहां दूर-दराज के नि: संतान दम्पत्ति मन्नत मांगने आते है, और उनकी मुरादे पुरी करती हैं मां काली। माँ काली मंदिर के नव निर्माण हेतु माँ काली पूजा समिति प्रयासरत हैं, गाव के लोगों का सहयोग मंदिर नव निर्माण में अपेक्षित हैं। माँ काली की पूजा धूम धाम से करने में गाव के विभिन्न जाति के लोग आदि काल से ही तत्पर हैं।
दुर्गा की आराधना भी यहाँ प्रतिवर्ष धूम-धाम से आयोजित की जाती है। गाँव अवस्थित राम जानकी ठाकुड़वाड़ी लगभग तीन सौ वर्ष से भी पुराना है। यहाँ लगभग 1901 में स्थापित शिवालय भी है। एक ऐसा भी महावीर मंदिर है जहां बजरंग बली को भात और दाल का भोग चढ़ाया जाता था। अब खीर का भोग लगाया जाता है।
भक्तो का ऐसा विश्वास है कि यहाँ धार्मिक अनुष्ठान से प्रकृति भी अपनी दिशा बदल देती हैं। गाँव में अवस्थित मस्जिद हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है। सामाजिक समरसता के कारण ही इस गाँव में अगड़े-पिछड़े, हरिजन, मुसलमान आदि जातियों का विभेद कभी नहीं रहा। यहां के वासी मिल-जुलकर सौहार्दपूर्ण वातावरण में जीवन यापन करते आ रहे हैं।"

